21 साल से शहीद बेटे के लिए थाली सजाती माँ, 22 साल से पति की याद में वीरांगना का कश्मीरी दुपट्टा
करगिल युद्ध को बीते हुए 21 साल हो चुके हैं, लेकिन उस युद्ध की वीरता और बलिदान की गाथाएँ आज भी हर भारतीय के दिल में बसी हुई हैं। 1999 में पाकिस्तान के साथ हुए इस युद्ध में कई भारतीय जवानों ने अपनी जान न्योछावर कर दी। उनकी शहादत आज भी उनके परिवारों और देशवासियों के दिलों में अमर है। इस लेख में हम आपको पांच ऐसे शहीदों की अनकही कहानियाँ बताएंगे, जिनके परिवार आज भी उनके बलिदान को अनोखे तरीकों से याद करते हैं। आइए जानते हैं उन वीरों की कहानियाँ और उनकी अनमोल यादों को।
1. अंबाला: बेटे के लिए 21 साल से रोज थाली सजाती माँ
अंबाला की 80 वर्षीय सरदारी देवी आज भी अपने शहीद बेटे पवन कुमार सैनी के लिए रोज खाना सजाती हैं। पवन, 1999 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे, लेकिन उनकी माँ के लिए वह आज भी जीवित हैं। घर में रोज पहली थाली पवन के नाम की लगती है, और उनका कमरा आज भी वैसा ही सजा हुआ है जैसे वह शहादत से पहले था। उनकी तस्वीरें, वर्दी और तमगे आज भी उनकी यादों को ताज़ा रखते हैं। 21 सालों से यह अनोखी परंपरा निभाई जा रही है, जहाँ उनके कमरे को मंदिर की तरह माना जाता है, और हर शुभ अवसर पर परिवार के लोग वहां आशीर्वाद लेने जाते हैं।
2. जोधपुर: पिता के अधूरे सपने को पूरा किया बेटे ने
तोलोलिंग की चोटी पर तिरंगा लहराते हुए 2 राजपूताना राइफल्स के लांस नायक बचन सिंह शहीद हुए। उनकी वीरांगना कमलेश बाला के दिल में आज भी पति की शहादत की यादें ताजा हैं। उनके बेटे हितेश ने अपने पिता का सपना पूरा करते हुए भारतीय सेना में अफसर बनकर उसी बटालियन में शामिल हुए, जहां उनके पिता ने देश के लिए अपना बलिदान दिया था। पिता की शहादत को न केवल याद किया बल्कि उनके नक्शेकदम पर चलते हुए बेटे ने अपने कर्तव्यों का पालन किया।
3. झुंझुनूं: शहीद बेटे की आखिरी निशानी, मां का टेप रिकॉर्डर
खड़गसिंह की माँ पतासी देवी के लिए उनके शहीद बेटे की एक टेप रिकॉर्डर सबसे अनमोल निशानी है। जब भी वह अपने बेटे को याद करती हैं, वह टेप रिकॉर्डर बजाती हैं। खड़गसिंह, कारगिल में सबसे पहले शहीद होने वाले जवानों में से एक थे। उन्होंने दुश्मनों को आखिरी सांस तक रोककर रखा, लेकिन अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनके जाने के बाद, उनकी माँ ने उनकी यादों को टेप रिकॉर्डर, टॉर्च और टिफिन के रूप में संजोकर रखा है।
4. सीकर: पति की आखिरी निशानी, कश्मीरी दुपट्टा
रामपुरा गांव के विनोद कुमार ने करगिल युद्ध में देश के लिए अपनी जान दी। उनकी पत्नी सविता देवी के लिए विनोद की आखिरी निशानी एक कश्मीरी दुपट्टा और साड़ी है, जो वे अपनी छुट्टियों में उनके लिए लाए थे। इस दुपट्टे को जब भी सविता देवी देखती हैं, तो वह अपने पति की यादों में खो जाती हैं। यह दुपट्टा उनके लिए एक अनमोल तोहफा है, जिसे उन्होंने आज भी संजोकर रखा है।
5. सीकर: पहले वेतन से लाई घड़ी, वीरांगना के लिए सबसे कीमती तोहफा
बनवारी लाल, जो सीकर के सिगडोला छोटा गाँव से थे, करगिल युद्ध में शहीद हुए थे। अपने पहले वेतन से वे अपनी पत्नी संतोष देवी के लिए एक घड़ी और कैमरा लेकर आए थे। आज, यह घड़ी और कैमरा उनके साथ बिताए हर उस पल की याद दिलाते हैं, जो उन्होंने साथ बिताए थे। संतोष देवी के लिए ये दोनों चीजें आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी बनवारी लाल के जीवित होने के समय थीं।
शहीदों की यादें: परिवारों के लिए जीने का सहारा
इन पांच वीर जवानों की शहादत ने न केवल देश की सीमाओं को सुरक्षित रखा, बल्कि उनके परिवारों को भी साहस और प्रेरणा दी। ये परिवार अपने शहीद बेटों, पतियों और भाइयों को अनोखे तरीकों से याद करते हैं और उनकी यादों को संजोए रखते हैं। चाहे वह माँ के द्वारा रोज थाली सजाना हो या पत्नी के द्वारा पति की निशानियों को संजोकर रखना, इन परिवारों के लिए ये अनमोल यादें उनके जीवन का हिस्सा हैं।
करगिल युद्ध की वीरता की कहानियाँ
करगिल युद्ध भारत की सैन्य इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रही है, जिसने देशवासियों को गर्व का अनुभव कराया। शहीदों की शहादत और उनके परिवारों के बलिदान की कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि देश की सुरक्षा के लिए किए गए बलिदान कभी भी भुलाए नहीं जा सकते। उनके प्रति सम्मान और कृतज्ञता का भाव हमेशा बना रहेगा।
करगिल के वीर शहीदों की यह अमर गाथा हर भारतीय के दिल में एक अमिट छाप छोड़ती है।