कर्नाटक में सरकार बनाने के दो दावेदार, येदियुरप्पा के 15 मिनट बाद कुमारस्वामी ने भी दावा पेश किया

कर्नाटक में सरकार बनाने के दो दावेदार, येदियुरप्पा के 15 मिनट बाद कुमारस्वामी ने भी दावा पेश किया

कर्नाटक में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी सरकार बनाने की दौड़ में कांग्रेस से पिछड़ गई। मंगलवार को रुझानों में काफी देर तक भाजपा ही बहुमत के आसपास थी। लेकिन, दोपहर बाद वह 104 सीटों पर ठहर गई। बहुमत से भाजपा के 9 सीटें दूर रहने का फायदा कांग्रेस ने उठाया। उसने गोवा-मेघालय का सबक याद रखा, जहां वह सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई थी। कांग्रेस ने 78 सीटों के बावजूद फुर्ती दिखाते हुए 38 सीटों वाले जनता दल सेक्युलर को समर्थन का एलान कर दिया। अचानक बदली स्थिति के बावजूद येदियुरप्पा ने कहा कि सौ फीसदी भाजपा ही सरकार बनाएगी। येदियुरप्पा ने राज्यपाल से मुलाकात कर सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने का दावा पेश किया। इसके महज 15 मिनट के बाद येदियुरप्पा और कुमारस्वामी ने भी सरकार बनाने का दावा पेश किया। बता दें कि 14 साल पहले 2004 में भी ऐसी ही स्थिति बनी थी। तब भाजपा को 79, कांग्रेस को 65 और जेडीएस को 58 सीटें मिली थीं। इसके बाद जेडीएस और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई थी जो 20 ही महीने चल पाई।

मौजूदा स्थिति : भाजपा सबसे बड़ी पार्टी, बहुमत से 9 सीटें दूर
राज्य में कुल सीटें 224 हैं। 2 सीटों पर मतदान बाकी है। बहुमत के लिए 113 जरूरी।
पार्टी2018 के रुझान2013अंतर
कांग्रेस78122- 44
भाजपा10440+64
जेडीएस+3840-2
अन्य0222-18
मोदी ने कर्नाटक की जनता और कार्यकर्ताओं को धन्यवाद किया
नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं कर्नाटक के भाई-बहनों को समर्थन देने के लिए धन्यवाद देता हूं। कर्नाटक की जनता ने विकास के एजेंडा का समर्थन किया, जिसके चलते भाजपा राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। मैं उन कार्यकर्ताओं को भी धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने दिन-रात मेहनत की और पार्टी के लिए काम किया।
भाजपा की सीटें कम होती गईं और कांग्रेस ने मौका भुना लिया
-मतगणना के शुरुआती आधे घंटे में कांग्रेस ने बढ़त बनाई। इसके बाद एक घंटे तक उसकी भाजपा से कड़ी टक्कर देखने को मिली। लेकिन साढ़े नौ बजे के बाद भाजपा आगे निकलकर बहुमत के करीब तक पहुंच गई।
- दोपहर 1 बजे के बाद एक बार भाजपा 122 सीट तक पहुंच गई। इसके बाद करीब 2:20 बजे तक पार्टी 104 सीटों पर आ गई।
- बदलते समीकरणों के बीच येदियुरप्पा ने बयान दिया कि भाजपा अकेले दम पर सरकार बना लेगी, उसे किसी के समर्थन की जरूरत नहीं है। इसके बाद जेडीएस का रुख बदला और कांग्रेस ने कोशिशें तेज की।
- दोपहर 3:34 बजे गुलाम नबी आजाद ने बेंगलुरु में कहा कि हमने देवगौड़ा और कुमारस्वामी से टेलीफोन पर बात की है। उन्होंने हमारे प्रस्ताव को स्वीकार किया है। हम एक साथ मिलकर सरकार बनाएंगे।
- इससे पहले कांग्रेस नेता जी परमेश्वर ने कहा, "हम जनादेश को स्वीकार करते हैं। सरकार बनाने के लिए हमारे पास आंकड़े नहीं है। ऐसे में कांग्रेस ने सरकार बनाने के लिए जेडीएस को समर्थन देने की पेशकश की है।"
- उधर, येदियुरप्पा को भाजपा ने दिल्ली आने से रोक दिया। भाजपा के सीएम कैंडिडेट ने बेंगलुरु में ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, "कांग्रेस एक बार फिर जनादेश के बावजूद उसे ठुकराने की कोशिश कर रही है, लेकिन कर्नाटक की जनता इसे स्वीकार नहीं करेगी। कांग्रेस पिछले रास्ते से सत्ता में आने की कोशिश कर रही है।"

अब नजरें राज्यपाल पर
- कांग्रेस की जेडीएस को समर्थन की पेशकश के बाद अब गेंद राज्यपाल वजूभाई वाला के पाले में है। देखना है कि वे सरकार बनाने का न्योता किसे देते हैं। आमतौर पर सबसे बड़े दल को पहले बुलाने की परंपरा रही है। हालांकि, पिछले साल गोवा में ऐसा नहीं हुआ था। वहां कांग्रेस 16 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी। 14 सीट हासिल करने वाली भाजपा ने महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी (एमजीपी) समेत 4 दलों का समर्थन हासिल कर पहले दावा पेश कर दिया। तब राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए पहले बुला लिया था।

येदियुरप्पा और सिद्धारमैया-कुमारस्वामी ने राज्यपाल से मुलाकात की
- शाम 5:00 बजे भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा, राज्यपाल वजूभाई वाला से मिलने पहुंचे। येदियुरप्पा ने राज्यपाल से कहा कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है, इसलिए सरकार बनाने का उन्हें मौका दिया जाए।
- इसके 15 मिनट बाद कांग्रेस के सिद्धारमैया और जेडीएस के कुमारस्वामी ने राज्यपाल से मुलाकात की। राज्यपाल से मिलकर लौटने के बाद उन्होंने 118 विधायक का समर्थन होने का दावा किया।

कुमारस्वामी दूसरी बार कम सीट लाकर भी बन सकते हैं मुख्यमंत्री
- कुमारस्वामी अगर मुख्यमंत्री बने तो दूसरी बार वे कम सीट हासिल करने के बाद भी राज्य की कमान संभालेंगे। 2004 में भी जेडीएस 58 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर थी। लेकिन पहले उसने कांग्रेस को समर्थन दिया। फिर भाजपा के समर्थन से खुद कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने।

पिता देवेगौड़ा भी 46 सांसदों के बावजूद प्रधानमंत्री बने थे
- कुमारस्वामी के पिता एचडी देवेगौड़ा भी कुछ इसी तरह 1996 में प्रधानमंत्री बने थे। तब अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस के समर्थन से तीसरे मोर्च ने सरकार बनाई थी।
- प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव पहले वीपी सिंह और ज्योति बसु को दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। इसके बाद जनता दल के एचडी देवेगौड़ा के नाम का प्रस्ताव आया। उस वक्त कांग्रेस के 140 और जनता दल के महज 46 सांसद थे। कम सांसदों के बाद भी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने।

पांच बड़ी सीटें जिन पर मुख्यमंत्री पद के दावेदार मैदान में थे
- कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सिद्धारमैया चामुंडेश्वरी और बादामी सीट से चुनाव लड़े। चामुंडेश्वरी से वे हार गए। बादामी से जीत गए।
- भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा ने शिकारीपुरा से मैदान में थे। वे आठवीं बार इस सीट से जीते।
- वहीं, जेडीएस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार एचडी कुमारस्वामी रामनगर और चन्नापाटना सीट से चुनाव लड़े।

कर्नाटक में सियासी नाटक के बीच चुनाव नतीजों पर एक नजर
1) कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा, लेकिन सीटें आधी हो गईं
- भाजपा और कांग्रेस दोनों के वोट शेयर में बढ़ोत्तरी हुई। कांग्रेस के वोट शेयर में 1.3% के इजाफा के बाद भी सीटें 122 से घटकर करीब आधी रह गईंं।

पार्टी2018 में वोट शेयर2013 में वोट शेयरअंतर
कांग्रेस37.9%36.6%+ 1.3%
भाजपा36.2%19.9%+16.3%
जेडीएस18.4%20.2%-1.8%
अन्य7.5%23.3%-15.8%

2) येदियुरप्पा ने ही पिछली बार भाजपा को हराया था, इस बार उन्हीं ने भाजपा की सीटें बढ़ाईं
- 2008 में कर्नाटक भाजपा की पहली सरकार के मुख्यमंत्री बने येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार से जुड़े आरोपों के चलते बाद में पद छोड़ना पड़ा था। उन्होंने कर्नाटक जनता पक्ष नाम से अलग पार्टी बना ली और 2013 का चुनाव अलग लड़ा। 2013 में येदियुरप्पा की पार्टी को 9.8% वोट शेयर के साथ 6 सीटें मिलीं। माना गया कि इससे भाजपा को नुकसान हुआ। उसका वोट शेयर सिर्फ 19.9% रहा और वह 40 सीटें ही हासिल कर सकी।
- इस बार येदियुरप्पा की भाजपा में वापसी हुई। उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया तो पार्टी का वोट शेयर 36.2% हो गया। यानी इसमें येदियुरप्पा की पार्टी का वोट शेयर तो जुड़ा ही भाजपा ने अपने बूते भी इसमें इजाफा किया।

3) सिद्धारमैया का लिंगायत कार्ड कांग्रेस को भारी पड़ा
- सिद्धारमैया ने चुनाव की तारीखों का एलान होने से ठीक पहले राज्य में लिंगायत कार्ड खेला। इस समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर केंद्र की मंजूरी के लिए भेजा। माना जा रहा है कि सिद्धारमैया का यह दांव उलटा पड़ा। इस कदम से वोक्कालिगा समुदाय और लिंगायतों के एक धड़े वीराशैव में भी नाराजगी थी। इससे उनका झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ा।
मोदी ने 21 रैलियों से 115 सीटों को कवर किया

- मोदी ने इस चुनाव में 21 रैलियां कीं। कर्नाटक में किसी प्रधानमंत्री की सबसे ज्यादा रैलियां थीं। दो बार नमो एप से मुखातिब हुए। करीब 29 हजार किलोमीटर की दूरी तय की। इस दौरान मोदी एक भी धार्मिक स्थल पर नहीं गए। 
- मोदी ने 20 करोड़ आबादी और 403 सीट वाले यूपी में 24 रैलियां की थीं। कर्नाटक की आबादी 6.4 करोड़ और 224 सीटें हैं। मोदी ने सबसे अधिक 34 रैलियां गुजरात में और 31 बिहार चुनाव में की थीं।
- भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 27 रैलियां और 26 रोड शो किए। करीब 50 हजार किलोमीटर की यात्रा की। 40 केंद्रीय मंत्री, 500 सांसद-विधायक और 10 मुख्यमंत्रियों ने कर्नाटक में प्रचार किया। भाजपा नेताओं ने 50 से ज्यादा रोड शो किए। 400 से ज्यादा रैलियां कीं।

राहुल की मोदी के बराबर रैलियां फिर भी कांग्रेस की सीटें कम हुईं
- कर्नाटक चुनाव में राहुल ने 20 रैलियां कीं और 40 रोड शो-नुक्कड़ सभाएं कीं। राहुल ने मोदी से दो गुना अधिक दूरी तय की। 55 हजार किमी की यात्रा की। इसके बावजूद कांग्रेस की सीटें पिछले बार (122) से घटकर आधे पर आ गईं।
- इससे पहले, राहुल ने यूपी चुनाव से पहले खाट पर चर्चा की थी। पूरे राज्य का दौरा किया था। 20 रैलियां और 8 रोड शो किए थे। यूपी में सोनिया गांधी ने प्रचार नहीं किया था, जबकि कर्नाटक में उन्हें प्रचार के लिए उतरना पड़ा।

64 लोकसभा सीटों वाले 4 राज्यों में इस साल होंगे चुनाव
1) मिजोरम: 1 लोकसभा सीट
2) राजस्थान: 25 लोकसभा सीटें
3) छत्तीसगढ़: 11 लोकसभा सीटें
4) मध्य प्रदेश:27 लोकसभा सीटे