लुढ़कते रुपए को क्यों नहीं संभाल पा रहे हैं पीएम मोदी

लुढ़कते रुपए को क्यों नहीं संभाल पा रहे हैं पीएम मोदी

डॉलर की तुलना में रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. शुक्रवार को भारतीय शेयर बाज़ार रुपए में 26 पैसे की गिरावट के साथ खुले और एक डॉलर की क़ीमत 71 रुपए हो गई.

भारतीय मुद्रा रुपए की 2018 में उभरते बाज़ार की मुद्राओं सबसे बुरी हालत दिख रही है. यहां तक की एशिया-प्रशांत में भी इसकी हालत पतली हो गई है.
आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि रुपए का कमज़ोर होना भारत के व्यापारिक घाटे का भी परिचायक है. कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में रुपए पर दबाव बना रहेगा. भारतीय कंपनियों के बढ़ते विदेशी खर्चों को भी रुपए में गिरावट का एक कारण माना जा रहा है.
अमरीका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी से लगभग सभी बड़े बाज़ार पूंजी निकाले जाने की चुनौती से जूझ रहे हैं. जिन देशों का चालू खाता घाटा ज़्यादा है वो सबसे ज़्यादा बेहाल हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि अभी दुनिया भर ऐसे कई उदाहरण हैं जो चालू खाते में घाटा के कारण अपनी मुद्रा में गिरावट से जूझ रहे हैं.

चालू खाता घाटा व्यापार संतुलन पर निर्भर करता है. व्यापार संतुलन का मतलब किसी भी देश के आयात और निर्यात में संतुलन से मतलब है.
तेल की क़ीमतों में किसी भी तरह की कोई गिरावट की उम्मीद नहीं है. ऐसे में रुपए की स्थिति में तत्काल कोई सुधार की उम्मीद नहीं है.
तेल की क़ीमतों के बारे में कहा जा रहा है कि यह 70 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहेगी. भारत का चालू खाता घाटा जीडीपी का 2.5 फ़ीसदी हो गया है जो कि पिछले 6 सालों में सबसे ज़्यादा है.

अगर कच्चे तेल की क़ीमत 90 डॉलर प्रति बैरल पहुंच जाता है तो भारत का चालू खात घाटा जीडीपी का 3.6 फ़ीसदी हो जाएगा.
हालांकि भारत विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में ज़्यादा स्थिर हुआ है. इंस्टिट्यूट फोर इंटरनेशनल फाइनैंश (आईआईएफ़) के अनुसार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इतना है कि 10 महीनों के आयात के लिए पर्याप्त है जबकि 2013 में छह महीनों के आयात भर ही बचा था.
इसके साथ ही जीडीपी के आकार और बड़े उभरते बाज़ारों के अनुपात में भारत पर विदेशी क़र्ज़ कम है.

भारत के आयात बिल में बढ़ोतरी नहीं थमी तो यह सिलसिला और जारी रह सकता है. गुरुवार को डॉलर की तुलना में रुपया 70.855 तक चला गया था और आज 71 तक पहुंच गया. यह अब तक के सबसे न्यूनतम स्तर पर है.
इस साल की शुरुआत से ही रुपए में गिरावट जारी है और अब तक 10 फ़ीसदी गिरावट आ चुकी है. कई विश्लेषकों का कहना है कि रुपया एक डॉलर की तुलना में 72 का आंकड़ा छू सकता है. हालांकि यह मसला केवल भारत का ही नहीं है.
दुनिया भर के बड़े बाज़ार में वहां की मुद्रा की हालत पतली है. तुर्की की मुद्रा लीरा ऐतिहासिक गिरावट झेल चुकी है.

भारत दुनिया के बड़े तेल आयातक देशों में से एक है. अगर तेल की क़ीमत बढ़ती है तो भारत के आयात बिल पर सीधा असर पड़ता है. इससे विदेशी मुद्रा भंडार भी प्रभावित होता है.
ईरान पर अमरीकी प्रतिबंधों के कारण भारत तेल आयात करना बंद कर रहा है. ईरान भारत को तेल डॉलर के बजाय रुपए लेकर भी देने की सुविधा देता था. ईरान से भारत का तेल आयात नहीं करना भी किसी झटके से कम नहीं है.

जून में भारत का चालू खाता घाटा 16 अरब डॉलर तक पहुंच गया था जो कि पिछले पांच सालों में सबसे ज़्यादा है. 70 का आंकड़ा भारतीय मुद्रा के लिए मनोवैज्ञानिक आंकड़ा कहा जा रहा था, लेकिन उसके भी पार जाना चिंता का विषय है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रुपए में गिरावट को लेकर अपने पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह पर हमलावर रहे हैं.
मोदी ने 2014 के आम चुनाव में इसे चुनावी मुद्दा बनाया था. 2013 में जब रुपए में गिरावट आई थी तो मोदी ने कहा था कि कांग्रेस ने भारतीय मुद्रा को आईसीयू में पहुंचा दिया है. हालांकि अब जब मोदी पीएम हैं तो रुपए की गिरावट पर ख़ामोश रहते हैं.
कुछ विशलेषकों का कहना है कि रुपए का कमज़ोर होना भारत के हक़ में भी है. इससे निर्यात बढ़ेगा और मैन्युफैक्चरिंग में निवेश को बढ़ावा मिलेगा.